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लेखनी कहानी -10-Apr-2023 क्या यही प्यार है

आनंद के सपने फिर से जवां होने लगे । वह अनुसूइया को लेकर न जाने क्या क्या सपने देखने लगा । एक दिन उसने लंच के लिए मिस शीतल को कहा कि वह अनुसूइया जी को भेज दे तो मिस शीतल ने कहा कि वे तो कहीं चली गई हैं । कहां गई हैं ये पता नहीं है । आनंद को बड़ा आश्चर्य हुआ कि अनुसूइया उसे बताये बिना कहां जा सकती है ? वह तो उसे उसके नये मकान को दिखाने ले जाना चाहता था । पर कोई बात नहीं , फिर दिखा देंगे, ऐसा सोच कर उसने लंच ले लिया और अपने काम में लग गया । 
एक दिन जब अनुसूइया ऑफिस में काम कर रही थी तो आनंद उसके चैम्बर में चला गया । उसे अपने चैम्बर में देखकर अनुसूइया असहज हो गई और अपनी सीट पर खड़ी हो गई । बड़ी मुश्किल से वह कह पाई "आप यहां , अचानक कैसे" ? 
"क्यों ? मेरा आना अच्छा नहीं लगा आपको ? आजकल आप मिलती ही कहां हैं ? आपके लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है तब जाकर कुछ इस तरह से मुलाकात हो पाती है । लगता है कि आजकल बहुत ज्यादा व्यस्त रहती हैं आप । क्यों सही है ना" ? आनंद के स्वर में कटाक्ष था ।

अनुसूइया क्या कहती ? चुप ही रही । उसके मन में गिल्टी फील हो रहा था पर वह भी क्या करे ? उसने जो काम हाथ में लिया था , उसे तो पूरा करना ही था । वह इतना ही बोली "सर, मन लगाकर काम करने की कोशिश कर रही हूं । उम्मीद है कि महीने दो महीने में इसका परिणाम सामने आ जायेगा" । 
"मैंने आपके लिए एक फ्लैट ढूंढ लिया है । आज शाम को देखने चलें उसे" ? आनंद ने चहकते हुए कहा । 
"मैं तो कल ही एक फ्लैट में शिफ्ट हो चुकी हूं" अनुसूइया ने धीरे से कहा 
"ओह । मुझे बताया भी नहीं ? लगता है कि अब आपको मेरी मदद की आवश्यकता नहीं है । चलो ठीक है । आप अपने पैरों पर खड़ी हो गई हैं, यह जानकर बहुत खुशी हुई" । यह कहकर आनंद जाने लगा । 
अनुसूइया ने आनंद का हाथ पकड़ लिया और उसकी आंखों में देखा । वहां आंसू ही आंसू थे और कुछ नहीं । उसका दिल खून के आंसू रो पड़ा । वह कुछ नहीं बोली और जल्दी से अपने केबिन से निकल कर घर चली गई । 

आनंद समझ नहीं पा रहा था कि अनुसूइया के व्यवहार में अचानक इतना परिवर्तन क्यों आ रहा है ? वह उससे कुछ कुछ दूरी बनाकर चलने लगी थी । क्या उसकी जिंदगी में कोई और आ गया है ? इस प्रश्न का उत्तर उसे मिल नहीं पाया । मिस शीतल से उसकी क्रियाविधि की रिपोर्ट लेने पर वह अक्सर बाहर ही मिलती थी । धीरे धीरे आनंद ने भी उसके बारे में जानना बंद कर दिया था । 

लगभग डेढ़ दो महीने बाद एक दिन सुबह आनंद उठा और समाचार पत्र पढने लगा तो उसकी आंखें चौंधिया गई । अविश्वसनीय सा समाचार था "लाश के 56 टुकड़े कर जंगल में फेंका । हत्यारे मोहसिन ने अपने लिव इन पार्टनर कविता चाहर की धारदार चाकू से हत्या की और सूटकेस में टुकड़े भरकर हत्यारा जंगल में उन्हें फेंक आता था" । 

आनंद इस समाचार को जल्दी जल्दी पढने लगा । एक समाचार पत्र के रिपोर्टर ने थानेदार के हवाले से यह खबर छापी थी कि जंगल में एक महिला के शरीर के कुछ अंग इधर उधर पड़े होने की खबर पर पुलिस वहां पहुंची और उन सभी अंगों को एकत्रित किया । उस क्षेत्र के आसपास के सभी सीसीटीवी खंगाले गये । एक सीसीटीवी में एक युवक एक सूटकेस ले जाता दिखाई दिया । उस युवक की तलाश की गई तो उसका नाम मोहसिन बताया गया । पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जब कड़ी पूछताछ की तो उसने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया और कहा कि वह कविता चाहर नामक लड़की के साथ लिव इन में रहता था । अचानक उसकी जिन्दगी में एक रेहाना नाम की लड़की आई । वह उसके प्रेम में फंस गया । कविता को रेहाना और उसके प्रेम का पता चल गया । कविता ने एक दिन इस बात पर बहुत हो हल्ला किया तो उसने चाकू से उसका कत्ल कर दिया और उसके बदन के 56 टुकड़े कर दिये । इन टुकड़ों को वह सूटकेस में भरकर जंगल में फेंक रहा था । अभी कुछ टुकड़े उसके फ्रिज में पड़े हुए हैं । पुलिस ने उसके घर के फ्रिज से कविता की लाश के कुछ टुकड़े बरामद कर लिये हैं और वह चाकू भी बरामद कर लिया है जिससे उसने कविता का कत्ल किया था । पुलिस ने मोहसिन को कोर्ट में पेश कर उसका दो दिन का रिमांड ले लिया है । अब वह उसे मौके पर ले जाकर सत्यापन करवायेगी" । 

आनंद का माथा घूम गया । ये क्या हुआ ? माना कि कविता धूर्त थी, मक्कार थी , धोखेबाज थी, बेवफा थी पर उसने तो उससे सच्चा प्यार किया था । वह कविता को कैसे भूल सकता था ? और साला मोहसिन  ? उसके कहने से ही तो कविता ने उसके साथ प्यार का नाटक रचनकर उसे ठगा था और अब साला खुद ही रेहाना के चक्कर में फंस गया । क्या यही प्यार है ? कविता ने मोहसिन के प्यार के लिए अपना सब कुछ यानि दीन ईमान , घर बार , माता पिता , नाते रिश्ते सब कुछ छोड़ दिये और इस शैतान ने एक पल में ही उसे कत्ल कर डाला और उसके 56 टुकड़े कर डाले । कितना नृशंस व्यक्ति है ये मोहसिन ? कोई अपनी माशूका को इतनी निर्दयता के साथ कैसे काट सकता है ? क्या इसे प्रेम कह सकते हैं ? अरे, प्रेम तो देने का नाम है लेने का नहीं । लेना तो सिर्फ व्यापार का नाम है, प्रेम का नहीं । कविता ने यद्यपि आनंद से प्रेम नहीं किया पर मोहसिन से तो किया था । मोहसिन के कहने से ही उसने आनंद को ठगने के लिए प्रेम का स्वांग रचा था । पर उसने क्या पाया ? धोखा , विश्वासघात और छल । उसने भी तो आनंद को यही दिया था तो अब उसे भी यही मिला । जो दूसरों के साथ छल करता है वह भी एक दिन छल का शिकार अवश्य होता है । आनंद को एक तरह से अच्छा भी लग रहा था पर उसका दिल रो भी बहुत रहा था । 

वह किंकर्तव्यमूढ की स्थिति में ही था कि अनुसूइया का फोन आ गया "क्या कर रहे हो आनंद ? आज का अखबार पढ़ा ? बहुत धमाकेदार खबर है आपके लिए" । वह बहुत चहक रही थी । आनंद समझ नहीं पाया कि वह इतनी खुश क्यों हो रही है ? 
"सुनो, आज मेरा फ्लैट देखने आ जाओ ना ? अभी तक देखा नहीं है आपने । आज यहीं पर लंच लेंगे हम दोनों । आ रहे हो ना" ? अनुसूइया की आवाज में वो कशिश थी कि आनंद मना नहीं कर सका । वह तैयार होने लगा । 

जब तक वह तैयार होता, अनुसूइया का कई बार फोन आ गया था । आज कितनी उत्साहित है अनुसूइया ! शायद उसे आनंद से भी अधिक खुशी हो रही थी । आनंद तैयार होकर अनुसूइया द्वारा भेजी लोकेशन पर पहुंच गया । उस लोकेशन को देखकर आनंद चौंक गया । यह फ्लैट तो कविता के उस मकान के बिल्कुल पास ही था जिसे आनंद ने उसे दिया था । वह आश्चर्य में डूबा हुआ अनुसूइया के फ्लैट में दाखिल हो गया । अनुसूइया ने शायद जानबूझकर दरवाजे खुले छोड़ दिये थे । उसे देखकर अनुसूइया उसके गले लगकर अपनी दोनों बांहें आनंद के गले में डाल कर झूलने लगी । उसने आनंद के चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर दी । आज तो जैसे वह पागल हो गई थी । आनंद को उसका व्यवहार समझ में नहीं आ रहा था । वह एक सोफे पर बैठ गया । 

अचानक उसकी निगाह सामने दीवार पर पड़ी । दीवार पर एक फोटो देखकर वह चौंक पड़ा । अनुसूइया ने एक हिजाब पहन कर वह फोटो खिंचवाई थी । उसमें वह बला की खूबसूरत लग रही थी । उस फोटो को देखकर उसके मुंह से निकल गया "ये कौन है" ? 
"रेहाना" । मुस्कुराते हुए अनुसूइया बोली 
"रेहाना ? कौन रेहाना" ? आनंद ने चौंकते हुए पूछा ।
"सुबह अखबार में नहीं पढ़ा था क्या" ? अनुसूइया के चेहरे पर मिस्ट्री का जैसे खजाना भरा था । 

आनंद को याद आया कि मोहसिन रेहाना के प्रेम में फंस गया था जिसका पता कविता को चल गया था । जिसे लेकर दोनों में झगड़ा हुआ और फिर मोहसिन ने कविता का कत्ल कर दिया । अब उसे भी फांसी की सजा हो जायेगी । पर इसका अनुसूइया से क्या संबंध था ? क्या अनुसूइया ही  रेहाना बनकर मोहसिन से मिली थी ? अचानक उसे सारी गुत्थियां सुलझतीं नजर आने लगीं । 

अनुसूइया का अपने स्तर पर कविता चाहर के बंगले के आसपास एक फ्लैट किराये से लेना , अक्सर उसका बाहर मिलना , आनंद से किनारा करना । कहीं यह सब अनुसूइया ने ही तो नहीं किया है ? उसके दिमाग की बत्ती जल गई थी । 
"तो क्या तुमने रेहाना बनकर यह इतना बड़ा काम किया ? एक तीर से दो शिकार" ? आनंद के स्वर में कौतुहल था । 
"मैं आपके लिए कुछ भी कर सकती हूं आनंद । आप नहीं जानते कि मैं आपसे कितना प्यार करती हूं । दरअसल, मैं आपसे प्यार नहीं करती हूं, बल्कि आपको पूजती हूं । जब आपने कविता चाहर के धोखे वाली बात सुनाई थी , बस, तभी से मैंने ठान लिया था कि मैं उसे सबक जरूर सिखाऊंगी । पर यह नहीं सोचा था कि वह साला हरामी उसके 56 टुकड़े करेगा । मैं तो बस यही चाहती थी कि मोहसिन और कविता में झगड़ा हो जाये और दोनों अलग अलग हो जायें तब कविता को महसूस हो कि धोखा देना क्या होता है ? इसलिए रेहाना बनकर मैं मोहसिन से मिली और वह मेरे जाल में फंस गया" । अनुसूइया के चेहरे पर अपनी सफलता का प्रकाश फैला हुआ था । 
"पर तुमने यह सब किया कैसे" ? 
"बहुत सिंपल है । बस, एक ऑडियो तैयार किया और इसे वायरल कर दिया । अपना काम बन गया" । 
"कौन सा ऑडियो  ? क्या है इस ऑडियो में" ? 
"खुद ही सुन लो" । यह कहकर अनुसूइया ने वह ऑडियो ऑन कर दिया । ऑडियो में दो आवाजें थीं । एक मोहसिन और दूसरी रेहाना की । ऑडियो इस प्रकार से था । 

"सुनो" रेहाना ने कहा
"सुनाओ" मोहसिन ने जवाब दिया 
"इतना लेट क्यों आये" ? थोड़ी नाराजगी के साथ आवाज थी 
"क्या करूं यार , थोड़ा लेट हो गया । सॉरी यार" 
"सॉरी का क्या करूं मैं ? इसका तो आचार भी नहीं बनता है । बहुत नाराज हूं मैं आपसे और आपके 'नन्हे मुन्ने' भी बहुत नाराज हैं आपसे" रेहाना की एक्टिंग बड़ी शानदार थी । 
"सच ! नन्हे मुन्ने भी नाराज हैं क्या " ? 
"हम कह रहे हैं तो विश्वास नहीं हो रहा है , क्यों" ? 
"नहीं, विश्वास हो रहा है पर वे दोनों नजर नहीं आ रहे हैं हमें । जरा दिखा दो उन्हें तो चैन आ जाये" मोहसिन अधीर होकर बोला 
"धत्त ! सबके सामने " ? 
"क्यों , क्या दिक्कत है " ? 
"बहुत दिक्कत है । मेरे लाडले और आपकी आंखों के तारों को मैं बहुत छुपा कर रखती हूं । कहीं दुनिया की नजर न लग जाये इसलिए , समझे जनाब । रात में दिखाऊंगी जब सब लोग सो जायेंगे । अब ठीक है" रेहाना ने फुसफुसा कर कहा । 
"जैसी आपकी मरजी जान" । 

बस, इतने ही डायलॉग थे । इन डायलॉग ने कविता के मन में संशय उत्पन्न कर दिया होगा कि रेहाना से न जाने कब से चक्कर चल रहा है और उससे मोहसिन के दो बच्चे भी हैं । बस, इस बात पर उखड़ गई होगी वह और वह हो गया जो नहीं होना चाहिए था । आनंद अनुसूइया की बांहों में लिपट गया । अनुसूइया भी इस पल के लिए न जाने कब से तरस रही थी । 

समाप्त 

श्री हरि 
19.4.23 

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2 Comments

Gunjan Kamal

23-Apr-2023 08:01 PM

👏👌

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Hari Shanker Goyal "Hari"

24-Apr-2023 02:33 PM

🙏🙏

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